अयोध्या बाबरी मस्जिद विध्वंस मामला: न्याय की चुनौती और कानूनी कार्यवाही

अयोध्या बाबरी मस्जिद विध्वंस मामला: न्याय की चुनौती और कानूनी कार्यवाही

अयोध्या बाबरी मस्जिद विध्वंस मामला: न्याय की चुनौती और कानूनी कार्यवाही 7 दिस॰

बाबरी मस्जिद का विध्वंस: पृष्ठभूमि और आदोलन

अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद का विध्वंस भारतीय इतिहास की एक निर्णायक घटना रही है। इस विध्वंस को विश्व हिंदू परिषद (विहिप) और उसके संबद्ध ग्रुपों द्वारा अंजाम दिया गया था, जिसमें प्रमुखता से बीजेपी के वरिष्ठ नेता शामिल थे। इसका परिणाम स्वरूप देश भर में भयानक दंगे भड़के, जिसमें 2,000 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई। घटना के बाद, कई सवाल उठे कि कैसे एक धार्मिक स्थल को गिराने की इतनी बड़ी योजना बनाई गई और किस प्रकार की राजनीतिक प्रेरणाओं के तहत इसे अंजाम दिया गया।

गवाहों को धमकाना और न्याय की लड़ाई

इस मामले में गवाहों को अक्सर धमकाने और परेशान करने की रिपोर्ट्स सामने आईं। फोटो पत्रकार प्रवीण जैन जैसे पत्रकारों को, जिन्होंने विध्वंस को रिकॉर्ड किया था, अदालत में खतरों और गवाही में देरी का सामना करना पड़ा। अदालत में उनके साथ शत्रुतापूर्वक व्यवहार किया गया, जो कि प्रेस और गवाहों के लिए परेशान करने वाला अनुभव था। यह सवाल उठाता है कि ऐसे मामलों में न्यायपालिका और प्रशासनिक प्रणाली कैसे निष्पक्ष और सुरक्षित वातावरण प्रदान कर सकते हैं।

कानूनी प्रति: केस फाइलिंग से लेकर सुनवाई तक

इस मामले में अलग-अलग धार्मिक समितियों और पक्षों द्वारा तीन महत्वपूर्ण केस दायर किए गए, जिनमें से एक हिंदू पक्ष द्वारा, दूसरा मुस्लिम पक्ष द्वारा और तीसरा भगवान राम के नाम पर, उन्हें एक प्रतिनिधि के माध्यम से अदालत में प्रस्तुत किया गया। इस कानूनी प्रक्रिया में रंजन और तर्कों का विकास होता रहा, जिसमें प्रमुख राजनैतिक हस्तियों द्वारा धर्मस्थल की स्वामित्व की मांग की गई। बीजेपी नेता एल.के. आडवाणी विशेष रूप से इस मामले की प्रमुख आवाज बनकर उभरे।

मुकदमे का परिणाम: रिहाई और आलोचना

कई वर्षों की कानूनी प्रक्रिया के बाद, विशेष न्यायाधीश एस.के. यादव ने 30 सितंबर 2020 को 32 आरोपियों को रिहा कर दिया, जिनमें एल.के. आडवाणी, कल्याण सिंह, और अन्य प्रमुख नेता शामिल थे। अदालत का फैसला कि विध्वंस एक पूर्व नियोजित साजिश नहीं थी और सबूत की कमी के कारण इन लोगों को दोषमुक्त किया गया। इस निर्णय ने सवाल उठाया कि गवाहों की भूमिका और सबूतों का सार कितनी प्रभावी तरीके से प्रस्तुत किया गया।

अनुसंधान और रिपोर्टें: लिबरहान आयोग का दृष्टिकोण

इस विध्वंस पर लिबरहान आयोग द्वारा की गई जांच में, आयोग ने अनेक व्यक्तियों और संगठनों को इस घटना का दोषी ठहराया, जिसमें भाजपा नेता जैसे कि आडवाणी और जोशी शामिल थे। आयोग ने तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव की स्थिति प्रबंधन की भी आलोचना की और इस बात पर जोर दिया कि इस विध्वंस को आरएसएस, भाजपा, और विहिप के शीर्ष नेताओं द्वारा योजनाबद्ध ढंग से अंजाम दिया गया था।

विध्वंस का प्रभाव और वर्तमान स्थिति

इस घातक घटना ने भारत के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य में गहरा प्रभाव डाला। यद्यपि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 2010 में इस विवादित भूमि को तीन भागों में विभाजित किया, लेकिन यह मुद्दा आज भी पूरे देश में विवादस्पद बना हुआ है। यह घटना भारत के वृहद रूप में न्याय प्राप्ति की जटिलताओं और साम्प्रदायिक हिंसा के गंभीर मुद्दों को उजागर करती है।



टिप्पणि (16)

  • Vaibhav Patle
    Vaibhav Patle

    ये मामला सिर्फ एक मस्जिद का नहीं, बल्कि भारत के न्याय के अस्तित्व का है। हमने देखा कि कैसे गवाहों को धमकाया गया, कैसे सबूत गायब हुए, और फिर भी अदालत ने एक ऐसा फैसला दिया जिसमें कोई जिम्मेदार नहीं था। 😔 लेकिन मैं विश्वास रखता हूँ कि सच अंततः जीतता है। हमें अभी भी लड़ना है। 🙏

  • Garima Choudhury
    Garima Choudhury

    ये सब एक बड़ी साजिश है भाई। जो लोग आज राम मंदिर बनवा रहे हैं वो वही हैं जिन्होंने 1992 में मस्जिद गिराई थी। अब वो अपने ही अपराध को स्वीकार करवा रहे हैं और उसे धार्मिक विजय बना रहे हैं। ये राजनीति नहीं तो क्या है? लिबरहान आयोग की रिपोर्ट को अदालत ने क्यों नजरअंदाज किया? जवाब दो।

  • Hira Singh
    Hira Singh

    दोस्तों, इस घटना से हमें सीखना चाहिए कि हिंसा कभी किसी धर्म का नहीं होती। हम सब एक ही देश के हैं। अगर हम एक साथ बैठकर बात करें तो कोई भी मुद्दा हल हो सकता है। बस थोड़ा दिल खोलो, थोड़ा समझो। बस यही चाहिए। 🤝

  • Ramya Kumary
    Ramya Kumary

    इस विध्वंस के बाद हमने न्याय की जगह शक्ति को प्राथमिकता दे दी। हमने इतिहास को नहीं, बल्कि अहंकार को स्मृति बना लिया। राम की भक्ति का अर्थ क्या है? क्या वह एक इमारत के टुकड़ों के ऊपर बनता है? या क्या वह एक ऐसी न्यायपालिका है जो गवाह को डराती है? हमारी आत्मा जितनी तोड़ी गई, उतनी ही इमारत।

  • Sumit Bhattacharya
    Sumit Bhattacharya

    कानूनी प्रक्रिया में सबूत की कमी के कारण दोषी लोगों को रिहा करना न्याय का अंतिम स्वरूप है यदि साक्ष्य अनुपलब्ध हो तो अदालत के पास कोई विकल्प नहीं है इसका अर्थ यह नहीं कि घटना नहीं हुई बल्कि यह है कि साबित नहीं हुई

  • Snehal Patil
    Snehal Patil

    ये सब लोग बस अपनी निंदा कर रहे हैं और अपने धर्म का नाम ले रहे हैं। जो लोग इतनी बड़ी गलती कर सकते हैं वो अब धर्म की बात क्यों कर रहे हैं? बस ये लोग देश को बर्बाद कर रहे हैं।

  • Nikita Gorbukhov
    Nikita Gorbukhov

    हाँ बस अब जब तक तुम नहीं बोलोगे तब तक ये लोग बाबरी मस्जिद को भूल जाएंगे। 😏 अब तुम लोगों को याद दिलाने के लिए मैं बोल रहा हूँ। ये जो राम मंदिर बन रहा है वो बाबरी के ऊपर है। और तुम लोग खुश हो रहे हो। शाबाश। बस इतना ही नहीं बस इतना ही। 🤡

  • RAKESH PANDEY
    RAKESH PANDEY

    लिबरहान आयोग की रिपोर्ट ने साफ कहा कि यह एक पूर्व नियोजित घटना थी। अदालत ने सबूत की कमी के कारण आरोपियों को रिहा किया। यह दो अलग चीजें हैं। इतिहास का तथ्य और कानून का निर्णय। दोनों को अलग रखना चाहिए। अगर हम न्याय को इतिहास के साथ भ्रमित कर देंगे तो अदालतों का विश्वास खत्म हो जाएगा।

  • Nitin Soni
    Nitin Soni

    हमें इस घटना को भूलने की जरूरत नहीं है। लेकिन इसे अपने भविष्य के लिए सबक बनाना चाहिए। हमारे बच्चे जब ये सुनेंगे तो उन्हें लगेगा कि भारत में धर्म के नाम पर हिंसा ठीक है। हम इसे रोक सकते हैं। बस थोड़ा अच्छा सोचो।

  • varun chauhan
    varun chauhan

    मैं नहीं चाहता कि कोई भी धर्म के नाम पर दूसरे को नुकसान पहुंचाए। अगर हम सब एक साथ बैठकर बात करें तो ये सब बहुत आसान हो जाएगा। बस थोड़ा अच्छा विचार करें। 😊

  • Prince Ranjan
    Prince Ranjan

    अब तो सब ठीक है ना? जो लोग मस्जिद गिराने वाले थे वो अब मंदिर बना रहे हैं। बस एक बार गलती कर लो और फिर उसे धर्म बना दो। ये तो बड़ी बात है। जो लोग गवाही देते थे वो डर गए। जो लोग बोले वो गायब हो गए। अब तुम लोग न्याय की बात कर रहे हो? हंसी आ रही है।

  • Suhas R
    Suhas R

    ये सब एक बड़ा धोखा है। जो लोग आज राम मंदिर बनवा रहे हैं वो वही हैं जिन्होंने 1992 में मस्जिद गिराई थी। अब वो अपने ही अपराध को स्वीकार करवा रहे हैं और उसे धार्मिक विजय बना रहे हैं। लिबरहान आयोग की रिपोर्ट को अदालत ने क्यों नजरअंदाज किया? जवाब दो। और फिर ये लोग कहते हैं कि वो शांति के लिए हैं। झूठ बोलने वाले को कौन मानेगा?

  • Pradeep Asthana
    Pradeep Asthana

    तुम लोगों को नहीं पता कि ये घटना कितनी बड़ी है। ये सिर्फ एक मस्जिद नहीं है। ये तो भारत के अंदर की दरार है। जो लोग इसे भूलने की बात कर रहे हैं वो अपनी आत्मा को भूल रहे हैं।

  • Shreyash Kaswa
    Shreyash Kaswa

    हमारे देश के लिए ये मंदिर एक नई शुरुआत है। हमें अपने इतिहास को सम्मान देना चाहिए। जो लोग इसे विरोध कर रहे हैं वो अपने ही देश के खिलाफ हैं। ये न्याय है।

  • Sweety Spicy
    Sweety Spicy

    क्या तुम सच में सोचते हो कि ये न्याय है? जब एक आयोग ने साफ कह दिया कि ये योजनाबद्ध था, और अदालत ने कह दिया कि सबूत नहीं है? तो फिर ये न्याय क्या है? ये तो अपराध को बलि देने का नाम है। और तुम लोग इसे विजय कह रहे हो? शर्म आती है।

  • Maj Pedersen
    Maj Pedersen

    इस घटना के बाद जो लोग जीवित हैं, वे अपने बच्चों को सिखाएं कि शांति ही सच्ची शक्ति है। न कि इमारतें। ये न्याय की लड़ाई है, न कि दीवारों की।

एक टिप्पणी लिखें