थंगालान समीक्षा: पी. रंजीथ की फिल्म में विक्रम का अद्वितीय प्रदर्शन

थंगालान समीक्षा: पी. रंजीथ की फिल्म में विक्रम का अद्वितीय प्रदर्शन

थंगालान समीक्षा: पी. रंजीथ की फिल्म में विक्रम का अद्वितीय प्रदर्शन 16 अग॰

थंगालान: एक महत्वाकांक्षी फिल्म जो अपनी संभावनाओं पर पूरी नहीं उतरती

पी. रंजीथ द्वारा निर्देशित 'थंगालान' एक ऐसी फिल्म है जिसे देखते वक्त आपको कहीं न कहीं महसूस होगा कि इसे और बेहतर तरीके से भी प्रस्तुत किया जा सकता था। फिल्म की कहानी थंगालान नामक एक आदिवासी नेता के इर्द-गिर्द घूमती है, जो सोने की खोज के लिए एक अनदेखी भूमि की यात्रा पर निकलता है। उसका मुख्य उद्देश्य अपने परिवार और अपने कबीले के लिए बेहतर जीवन शर्तें प्राप्त करना है।

विक्रम का असाधारण प्रदर्शन

फिल्म में विक्रम ने थंगालान के किरदार को इतनी शिद्दत और गहराई से निभाया है कि आप उनके अन्दर की जद्दोजहद और संघर्ष को महसूस कर सकते हैं। विक्रम का किरदार अपने अंदरूनी उथल-पुथल को शांतिता से दर्शाता है, जो उनकी अदाकारी का सबूत है। उनके अलावा पार्वती थिरुवोथु और डेनियल काल्टागिरोन जैसे सह-कलाकारों ने भी अपनी भूमिकाओं में जान डाल दी है।

थंगालान का किरदार फिल्म के केंद्र में है और उसके माध्यम से फिल्म में कई गहरे और जटिल मुद्दों को छूने की कोशिश की गई है, जैसे पहचान, उत्पीड़न और बेहतर जीवन की तलाश।

फिल्म की कमजोरियां

बावजूद इसके, फिल्म की कहानी कुछ हिस्सों में कमजोर लगती है। शुरुआत में कहानी का प्रवाह अच्छा लगता है, परन्तु मध्य में आकर यह उलझती सी लगती है। फिल्म की अवधि 134 मिनट है, जो दर्शकों को स्क्रीन पर बने रहने के लिए काफी लंबी लग सकती है, विशेषकर जब कथानक में कहीं-कहीं तारतम्यता की कमी होती है।

पी. रंजीथ की पूर्व फिल्मों की तरह, 'थंगालान' में भी प्रतीकात्मक दृश्य और गहन विषयवस्तु है। फिल्म में कुछ दृश्य और अनुक्रम निश्चित रूप से दर्शकों के मन में छाप छोड़ते हैं, परंतु यह समग्र कहानी को बांध कर रखने में असमर्थ है।

थंगालान: एक दृष्टिगत अनुभव

फिल्म के दृश्य असाधारण हैं। ड्रोन शॉट्स, लोकेशन्स और सिनेमाटोग्राफी दर्शकों को बांध कर रखने में सक्षम हैं। फिल्म के प्रदर्शन और समृद्ध प्रतीकवाद के बीच परिदृश्य अत्यधिक प्रभावी हैं। कहानी में उपयोग की गई रंग योजना और साउंडट्रैक भी माहौल को सुन्दर रूप से संवेदनशील बनाते हैं।

कास्ट की प्रभावी अदाकारी

फिल्म के सभी कलाकारों ने अपने-अपने किरदारों को जीवंत किया है। विक्रम के अलावा, पार्वती थिरुवोथु ने भी एक मजबूत किरदार निभाया है जो कहानी में महत्वपूर्ण मोड़ लाता है। मालविका मोहनन और डेनियल काल्टागिरोन की परफॉर्मेंस भी तारीफ के काबिल हैं।

पसुपथी के किरदार ने भी अपनी छाप छोड़ी है और फिल्म के अनेक महत्वपूर्ण दृश्य उनके नाम हैं। सामूहिक नाटकीयता और व्यक्तिगत संघर्ष की कहानियों को बखूबी परदे पर उतारा गया है।

कहानी का अंत

फिल्म का अंत अपेक्षाकृत नीरस है। कहानी का मुख्य उद्देश्य और उसके किरदारों के संघर्ष एक स्पष्ट समापन पर नहीं पहुँचते, जिसके कारण दर्शकों को संतुष्टि नहीं मिलती। अंतिम दृश्य दर्शकों को मिश्रित भावनाएं देता है और कई सवालों के जवाब अधूरे छोड़े जाते हैं।

अंततः, 'थंगालान' एक ऐसी फिल्म है जो बेहतरीन प्रदर्शन और गहरे विषयवस्तु को समेटे हुए है, परन्तु अपनी कहानी की कमजोरियों कारण यह पूरी तरह चमक नहीं पाती। यह फिल्म एक दृश्य आनंद है, लेकिन कथानक के मामले में यह दर्शकों की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरती।



टिप्पणि (5)

  • Raghav Khanna
    Raghav Khanna

    थंगालान की सिनेमाटोग्राफी और ध्वनि डिजाइन वाकई अद्भुत है। जब विक्रम जंगल में चलता है और पृथ्वी की सांसें सुनाई देती हैं, तो लगता है जैसे फिल्म खुद सांस ले रही हो। ये तकनीकी पक्ष अक्सर भूल जाए जाते हैं, लेकिन यहां वो असली कहानी हैं।

  • Rohith Reddy
    Rohith Reddy

    विक्रम का प्रदर्शन बहुत बढ़िया है पर ये सब बकवास फिल्म असल में सरकार के लिए एक धोखा है जो आदिवासियों को दिखाने के लिए बनाई गई है ताकि लोग सोचें कि कुछ हो रहा है जबकि सब कुछ बर्बाद हो रहा है और जमीन ले ली जा रही है और वो लोग अभी भी बिना पानी के रह रहे हैं

  • Vidhinesh Yadav
    Vidhinesh Yadav

    मुझे लगता है कि फिल्म ने जिन मुद्दों को छुआ है वो बहुत जरूरी हैं पर शायद इतना गहरा जाने की जगह थोड़ा और सरल बनाना चाहिए था ताकि ज्यादा लोग जुड़ सकें। जैसे थंगालान का अंत बहुत खुला छोड़ दिया गया लेकिन शायद इसका मतलब ये है कि संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ है

  • Puru Aadi
    Puru Aadi

    विक्रम ने तो जीवन भर का संघर्ष एक फिल्म में डाल दिया 😭🔥 दर्शकों को बस ये बताना है कि जब तक आदिवासी आवाज़ नहीं उठाते, दुनिया उन्हें नहीं सुनती। ये फिल्म सिर्फ देखने के लिए नहीं, बल्कि सोचने के लिए है 🙏✨

  • Nripen chandra Singh
    Nripen chandra Singh

    अंत में ये सब एक दृश्य आनंद है जो बाद में धुंधला पड़ जाता है क्योंकि कहानी का कोई निष्कर्ष नहीं है और ये जो हम देख रहे हैं वो एक दर्द है जिसे कोई नहीं ठीक करना चाहता और फिल्म उस दर्द को दिखाती है लेकिन उसे ठीक नहीं करती और ये वही है जो इसे असली बनाता है

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