Trump की 100% फार्मास्युटिकल टैरिफ के बाद Nifty Pharma Index में 3% गिरावट

Trump की 100% फार्मास्युटिकल टैरिफ के बाद Nifty Pharma Index में 3% गिरावट

Trump की 100% फार्मास्युटिकल टैरिफ के बाद Nifty Pharma Index में 3% गिरावट 27 सित॰

ट्रम्प की टैरिफ घोषणा और उसका त्वरित असर

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपनी सोशल प्लेटफ़ॉर्म Truth Social पर एक आधिकारिक नोटिस जारी किया, जिसमें वह सभी ब्रांडेड या पेटेंटेड फार्मास्युटिकल उत्पादों पर Nifty Pharma सहित 100% टैरिफ लगाने का इरादा जताया। यह उपाय 1 अक्टूबर 2025 से लागू होगा और "राष्ट्रीय सुरक्षा" तथा "अमेरिकी कंपनियों को अनुचित बाहरी प्रतिस्पर्धा से बचाने" के नाम पर पेश किया गया है। इस कदम की वजह से भारतीय स्टॉक बाजार में तुरंत नकारात्मक भावना पनप गई, और Nifty Pharma Index ने लगभग 3% की तेज गिरावट दर्ज की।

ट्रम्प ने कहा कि जो कंपनियां यू.एस. में उत्पादन सुविधाएँ स्थापित कर रहे हैं, उन्हें इस टैरिफ से छूट मिलेगी। परंतु निर्माताओं को अब केवल कुछ ही हफ्तों में अपनी रणनीति पुनः बनानी होगी, नहीं तो उनके निर्यात पर पूर्ण शुल्क लग जाएगा।

भारतीय दवा कंपनियों पर संभावित प्रभाव

भारतीय दवा कंपनियों पर संभावित प्रभाव

Sun Pharma, Dr Reddy’s Laboratories, Cipla और Lupin जैसे बड़े खिलाड़ी अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा यू.एस. बाजार से कमाते हैं। विशेषकर जेनरिक दवाओं के सस्ते विकल्पों के लिए यू.एस. में उनका निर्यात अत्यंत महत्वपूर्ण है। टैरिफ के कारण इन कंपनियों को दो मुख्य चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा: एक तो निर्यात लागत में अचानक इजाफा, और दूसरा उत्पादन नेटवर्क को यू.एस. में स्थानांतरित करने की तेज़ी से बदलती जरूरत।

कंपनियों के लिए सबसे बड़ा सवाल अब यह है कि क्या वे मौजूदा प्रोजेक्टों को तेज़ी से आगे बढ़ाकर यू.एस. में कारखाना बना पाएँगे या फिर उन्हें अपने मौजूदा निर्यात मॉडल को फिर से देखना पड़ेगा। इन फैसलों में फाइनेंसिंग, नियामक अनुमोदन और स्थान चयन जैसे कई जटिल पहलू शामिल हैं।

टैरिफ के दायरे में अभी तक जेनरिक दवाओं के लिए स्पष्टता नहीं है। ट्रम्प ने कहा है कि टैरिफ "ब्रांडेड या पेटेंटेड" दवाओं पर लागू होगा, परन्तु जेनरिक की परिभाषा और उनका वर्गीकरण अभी भी अस्पष्ट है। यह अनिश्चितता निवेशकों में अतिरिक्त घबराहट पैदा कर रही है, क्योंकि भारतीय कंपनियों की बड़ी हिस्सेदारी जेनरिक‑सेगमेंट में है।

ट्रम्प की इस टैरिफ पॉलिसी के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी भारी शुल्क लगाए जा रहे हैं: रसोई के अलमारियों और बाथरूम के वैनिटीज़ पर 50% टैरिफ, अपहोल्स्टर्ड फर्नीचर पर 30% और हाई‑ड्यूटी ट्रकों पर 25%। सभी उपायों के पीछे "आयात की बाढ़" और "राष्ट्रीय सुरक्षा" के बहाने पेश किए गए हैं।

फ़ेडरल रिज़र्व के चेयर जेरोम पॉवेल ने बताया कि आयातित वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण मौद्रिक नीति पर दबाव बढ़ रहा है, और ये टैरिफ सीधे तौर पर इस महंगाई को बढ़ा सकते हैं। कई अर्थशास्त्री इस बात पर सहमत हैं कि दवाओं पर टैरिफ लगने से अमेरिकी उपभोक्ताओं को स्वास्थ्य सेवा की लागत में असमान रूप से झटका लग सकता है।

बाजार विशेषज्ञों ने कहा कि भारतीय फार्मा कंपनियों को अब दो‑तीन विकल्पों में से एक चुनना पड़ेगा: या तो यू.एस. में उत्पादन इकाई स्थापित कर टैरिफ से बचें, या फिर कीमतें बढ़ाकर टैरिफ की भरपाई करें, जिससे अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धा घट सके। निवेशकों ने इस खबर पर शेयरों की कीमतों में तीव्र गिरावट को प्रतिबिंबित किया, और कई बड़े फंड्स ने अपने पोर्टफ़ोलियो में जोखिम घटाने के लिए शेयर बेचना शुरू कर दिया।

इस स्थिति में कुछ कंपनियों ने पहले से ही यू.एस. में जॉइन वेंचर या ग्राफ्टलिंग (साझेदारी) के विकल्पों की खोज शुरू कर दी है। उदाहरण के तौर पर, Sun Pharma ने एक अमेरिकी बायोटेक कंपनी के साथ प्रारंभिक बात‑चीत का उल्लेख किया है, जिससे उनका उत्पादन क्षमता बढ़ेगा और टैरिफ के प्रभाव को कम किया जा सकेगा। Dr Reddy’s ने भी कई छोटे‑मोटे प्लांट निर्माण की संभावनाओं को खोजा है, ताकि उनका निर्यात बिंदु बदल सके।

ट्रम्प की नीति का दीर्घकालिक असर अभी स्पष्ट नहीं है, परंतु यह स्पष्ट है कि यू.एस. में फार्मास्युटिकल सप्लाई‑चेन का पुनर्संयोजन जल्द ही कई बड़े बदलाव लाएगा। भारतीय कंपनियों के लिए यह एक जोखिमपूर्ण लेकिन साथ ही निवेश के नए अवसर भी प्रस्तुत करता है, क्योंकि स्थानीय उत्पादन की दिशा में बदलाव से नई जॉब्स और तकनीकी उन्नति की संभावना भी बढ़ती है।

संक्षेप में, अमेरिकी टैरिफ घोषणा ने भारतीय दवा उद्योग को चौंका दिया है, और यह बाजार में नई रणनीति‑परिवर्तन का संकेत है। अब देखना यह रहेगा कि कंपनियां कैसे अपनी उत्पादन रणनीति को फिर से आकार देती हैं और यू.एस. उपभोक्ताओं को कौन‑से मूल्य‑बदलाव का सामना करना पड़ेगा।



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