डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर में नॉन-टीचिंग पदों के लिए भर्तियां निकली हैं, जिनमें स्पोर्ट्स एजुकेशन से जुड़े पद शामिल हैं। विश्वविद्यालय BPES जैसी स्नातक डिग्री भी देता है। योग्य उम्मीदवार आवेदन कर सकते हैं।
स्पोर्ट्स एजुकेशन: खेल से सीखें सफलता की राह
क्या आप सोचते हैं कि सिर्फ मैदान में खेलने से ही फिटनेस मिलती है? असल में, अगर हम खेल को पढ़ाई के साथ जोड़ दें तो बच्चा ना केवल शारीरिक रूप से मजबूत बनता है, बल्कि दिमागी विकास भी तेज़ होता है। भारत में आज‑कल स्कूलों और कॉलेजों में स्पोर्ट्स एजुकेशन का महत्व तेजी से बढ़ रहा है।
खेल शिक्षा के मुख्य फायदे
पहला फायदा है टीमवर्क सीखना। जब खिलाड़ी मिलकर जीत या हार को संभालते हैं, तो वे आपस में सहयोग करना समझ जाते हैं। दूसरा, समय प्रबंधन की कला आती है – ट्रेनिंग और पढ़ाई दोनों को एक साथ कैसे चलाया जाए, यही सिखाता है। तीसरा, आत्म‑विश्वास बढ़ता है; चाहे वो मुंबई में तेज़ बाढ़ के कारण ट्रेनों का रुकना हो या T20 मैच में तेज़ गेंदबाज़ी, चुनौतियों से निपटना रोजमर्रा की जिंदगी में मदद करता है।
ताज़ा खबरें भी यह दर्शाती हैं कि खेल को समझदारी से अपनाने पर सामाजिक लाभ होते हैं। उदाहरण के लिए, मुंबई की लगातार बाढ़ ने ट्रांसपोर्ट को बाधित किया, लेकिन स्थानीय स्कूलों ने बच्चों को सुरक्षित रूप से घर तक पहुँचाने के लिए वॉटर‑सुरक्षित क्रीड़ा कार्यक्रम शुरू किए। इसी तरह IPL और T20 सीरीज़ में युवा खिलाड़ियों ने दिखाया कि सही रणनीति और निरंतर अभ्यास कैसे बड़े मंच पर जीत दिला सकता है।
स्पोर्ट्स एजुकेशन कैसे शुरू करें?
1. स्कूल या कॉलेज के खेल विभाग से जुड़ें – अधिकांश संस्थानों में बैडमिंटन, फुटबॉल, एथलेटिक्स जैसे विकल्प होते हैं। 2. रोज़ाना कम से कम 30 मिनट का व्यायाम रखें – दौड़ना, स्किपिंग या योग आसान और असरदार है। 3. वीडियो देख कर तकनीक सीखें – YouTube पर कई कोच छोटे‑छोटे टिप्स देते हैं, जैसे कैसे सही स्ट्राइक में बैटिंग करना या तेज़ दौड़ लगाना। 4. स्थानीय टूर्नामेंट में भाग लें – यह अनुभव बढ़ाता है और सिखाता है कि दबाव में कैसे खेला जाए। 5. पढ़ाई को न भूलें – समय‑टेबल बनाकर अध्ययन के घंटे तय करें, फिर बाकी समय प्रशिक्षण को दें।
अगर आप अभिभावक हैं तो अपने बच्चे की रुचि पर ध्यान दें। कभी‑कभी बच्चा सिर्फ खेल में ही नहीं बल्कि उससे जुड़े सिद्धांतों में भी दिलचस्पी लेता है – जैसे खेल विज्ञान या पोषण। ऐसे में उसे पढ़ाई के साथ एक छोटा प्रोजेक्ट करवाएं, जिससे वह समझ सके कि सही डाइट से प्रदर्शन कैसे बदलता है.
अंत में यह कहा जा सकता है कि स्पोर्ट्स एजुकेशन सिर्फ फिटनेस नहीं, बल्कि जीवन की पूरी तैयारी है। जब आप खेल को पढ़ाई के साथ जोड़ते हैं तो बच्चा एक संतुलित, आत्म‑निर्भर और सफल व्यक्ति बनता है। तो देर किस बात की? अभी अपना पहला क्रीड़ा सत्र बुक करें और देखें कि कैसे छोटे‑छोटे कदम बड़े बदलाव लाते हैं.