भारतीय निशानेबाज अवनी लेखरा की ऐतिहासिक जीत और मोना अग्रवाल का कांस्य पदक
भारतीय पैरालिम्पियन निशानेबाज अवनी लेखरा ने पेरिस पैरालिम्पिक्स में एक बार फिर से इतिहास रच दिया है। महिलाओं की 10 मीटर एयर राइफल SH1 वर्ग में, उन्होंने 249.7 अंकों के साथ नया गेम्स रिकॉर्ड बनाते हुए लगातार दूसरा स्वर्ण पदक जीता। इस सफलता ने उन्हें पैरालिम्पिक खेलों में दो स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बना दिया। इस जीत से पहले, उन्होंने टोक्यो पैरालिम्पिक्स में 249.6 अंकों के साथ स्वर्ण पदक जीता था। इस बार उन्होंने अपने स्वयं के रिकॉर्ड को तोड़ा। अवनी की साथी, मोना अग्रवाल ने 228.7 अंकों के साथ कांस्य पदक जीता, जो पेरिस पैरालिम्पिक्स में उनका पदार्पण था।
ली युनरी ने जीता रजत पदक
दक्षिण कोरिया की ली युनरी ने 246.8 अंकों के साथ रजत पदक जीता। उन्होंने अंतिम शॉट में 6.8 अंक प्राप्त किए, और स्वर्ण पदक जीतने से चूक गईं। क्वालीफिकेशन राउंड में अवनी ने 625.8 अंकों के साथ दूसरा स्थान प्राप्त किया था, जबकि मोना ने 623.1 अंकों के साथ पांचवां स्थान प्राप्त किया। यूक्रेन की इरीना शत्त्निक ने क्वालीफिकेशन राउंड में 627.5 अंकों के साथ नया पैरालिम्पिक योग्यता रिकॉर्ड स्थापित किया।
SH1 वर्ग में सुविधाएं और खेल की कठिनाई
SH1 वर्ग उन निशानेबाजों के लिए है, जिनके निचले अंगों में दोष होता है। इस वर्ग के खिलाड़ी स्वतंत्र रूप से अपनी राइफल पकड़ सकते हैं और खड़े या बैठने की स्थिति से शूट कर सकते हैं। अवनी ने पहले भी टोक्यो 2020 में 10 मीटर एयर राइफल SH1 और 50 मीटर राइफल थ्री पोजीशन SH1 में एक स्वर्ण और एक कांस्य पदक जीता था। उनकी इन उपलब्धियों के लिए उन्हें पद्म श्री और खेल रत्न जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।
पेरिस पैरालिम्पिक्स में भारत की सशक्त शुरुआत
अवनी और मोना की इस युगल पदक जीत ने पेरिस 2024 पैरालिम्पिक खेलों में भारत के पदक यात्रा की शुरुआत की है। इस बार का भारतीय दल अब तक का सबसे बड़ा है, जिसमें 84 एथलीट 12 खेलों में भाग ले रहे हैं। यह मजबूत शुरुआत भारतीय दल के उत्साह और समर्पण को दर्शाता है। पूरा देश इस सफलता पर गर्व महसूस कर रहा है और भविष्य में और सफलताओं की उम्मीद कर रहा है।
ऐतिहासिक कहानी की झलक
अवनी लेखरा का सफर एक प्रेरणादायक कहानी है। एक दुर्घटना में अपने निचले अंगों को खोने के बाद भी, उन्होंने कभी हार नहीं मानी और अपनी इच्छाशक्ति से अपने सपनों को पूरा करने की ठान ली। 2012 में, उन्होंने अपने करियर की शुरुआत की और समय के साथ इंटरनेशनल स्तर पर अपनी पहचान बनाई। न केवल गहन प्रशिक्षण, बल्कि मानसिक तैयारी ने भी उनकी सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
मोना अग्रवाल, जिन्होंने अपने पैरालिम्पिक करियर की शुरुआत पेरिस में की, ने भी अपनी मेहनत और लगन से कांस्य पदक हासिल किया। उनकी इस सफलता ने उन्हें एक नई प्रेरणा और उर्जा दी है।
भारतीय पैरालिम्पिक्स दल का भविष्य
पेरिस पैरालिम्पिक्स में भारतीय दल की यह शानदार शुरुआत भविष्य की संभावनाओं के लिए बहुत उत्साहजनक है। निशानेबाजी के क्षेत्र में भारत की यह सफलता दूसरे खेलों में भी प्रदर्शन के लिए एक मिसाल कायम कर रही है। भारतीय एथलीट्स का प्रदर्शन हर गुजरते दिन के साथ निखरता जा रहा है, और आने वाले समय में हमें और भी कई स्वर्ण, रजत और कांस्य पदक की उम्मीद जगती है। अवनी लेखरा और मोना अग्रवाल की यह सफलता युवा खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगी।
ध्यान और मेहनत की कहानी
अवनी और मोना, दोनों ही एक मिसाल हैं कि कैसे उचित ध्यान, कठोर परिश्रम और मजबूत इच्छाशक्ति से कुछ भी असंभव नहीं होता। अवनी ने अपनी मानसिक और शारीरिक चुनौतियों को पार करते हुए जिस तरह से अपनी सफलता का सफर तय किया है, वह वाकई प्रेरणादायक है। मोना भी अपने संघर्षों और कठिनाइयों के बावजूद अपने पहले पैरालिम्पिक में पदक हासिल करने में सफल रही हैं।
यह केवल व्यक्तिगत सफलता नहीं है, बल्कि पूरी भारतीय टीम की सामूहिक मेहनत और लगन का परिणाम है। उनके कोच, परिवार और साथी खिलाड़ियों का सहयोग भी इस सफलता के पीछे अहम भूमिका निभाता है।
अन्य एथलीट्स के लिए प्रेरणा
अवनी लेखरा और मोना अग्रवाल की उपलब्धियों ने न केवल निशानेबाजी के क्षेत्र में बल्कि अन्य खेलों में भी एक नई ऊर्जा और उम्मीद का संचार किया है। भारतीय एथलीट्स के लिए यह समय बहुत ही महत्वपूर्ण है और ये उपलब्धियां उन्हें और भी मेहनत करने के लिए प्रेरित करेंगी।
इस प्रेरणा के बल पर भारतीय एथलीट्स आने वाले सभी अंतरराष्ट्रीय आयोजनों में और भी दमखम के साथ अपने प्रदर्शन को दिखाएंगे। उन्हें देखकर अन्य युवा भी खेलों में अपनी सफलता की उड़ान भर सकेंगे।
सपनों की उड़ान
अवनी और मोना दोनों ने यह साबित कर दिखाया है कि सपनों की कोई सीमा नहीं होती। सही दिशा में प्रयास और अटूट समर्पण से सब कुछ संभव है। पेरिस पैरालिम्पिक्स में उनके प्रदर्शन ने एक बार फिर से यह संदेश दिया है कि भारतीय खेल का भविष्य उज्ज्वल है और हम आने वाले सभी चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार हैं।
इस सफर के साथ, भारतीय खेल जगत को एक नई पहचान मिली है और हमें अपने सभी खिलाड़ियों पर गर्व है।
Seemana Borkotoky
अवनी ने जो किया वो सिर्फ एक पदक नहीं, एक पूरी पीढ़ी के लिए दरवाजा खोल दिया। मैंने एक बच्ची को टीवी पर देखा जो बोल रही थी - मैं भी ऐसा करूँगी। ये जीत सिर्फ खेल की नहीं, दिलों की है।
मोना का कांस्य भी इतना ही बड़ा। दोनों ने एक साथ भारत को आकाश छू दिया।
Rakesh Joshi
भारत के खेलों का सच्चा भविष्य यही है - न तो बोलने की बातें, न किसी के नाम के आगे अधिकारी का टाइटल, बल्कि एक लड़की जिसने अपनी राइफल से दुनिया को चुनौती दी।
अवनी लेखरा - भारत की असली शक्ति।
Ratanbir Kalra
सफलता क्या है अगर इसे आंकड़ों से नापा जाए तो अवनी ने 249.7 बनाया लेकिन उसने जो बदला वो एक नए दृष्टिकोण का जन्म दिया जिसमें असमर्थता का अर्थ बदल गया अब ये एक शक्ति है जो असंभव को संभव बनाती है और ये तो बस एक शूट नहीं ये एक विप्लव है
Sarvasv Arora
अरे भाई ये सब जो लोग रो रहे हैं वो तो बस टीवी पर रो रहे हैं जबकि अवनी ने अपनी राइफल से जिंदगी के दरवाजे तोड़ दिए थे और अब तुम फिर से पदकों की गिनती कर रहे हो जैसे कि ये एक राजनीतिक ड्रामा है
क्या तुमने कभी सोचा कि उस लड़की को घर पर भी नहीं छोड़ा जाता था और वो अब दुनिया के टॉप पर है
Jasdeep Singh
क्या आप लोग इसे एक राष्ट्रीय जीत मान रहे हैं जबकि इस खेल में भारत के पास कोई विकास नहीं है अगर आप इसे आंकड़ों से देखें तो ये सिर्फ एक बार की चमक है जो निरंतरता की कमी से भरी है
हमारे पास निशानेबाजी के लिए कोई राष्ट्रीय नीति नहीं है जिसके बारे में आप सब चुप हैं और बस इस एक खिलाड़ी के चारों ओर नाच रहे हैं
ये तो बस एक व्यक्तिगत अभिनय है जिसे राष्ट्रीय अभिमान के नाम पर बढ़ाया जा रहा है
हमारे पास 84 एथलीट हैं लेकिन उनमें से कितने के पास उचित प्रशिक्षण है कितने के पास एक डिजिटल स्कोरिंग सिस्टम है
ये सब नाटक है जिसे मीडिया ने बना दिया है
अगर आप सच में गर्व महसूस कर रहे हैं तो तुरंत एक राष्ट्रीय नीति बनाएं न कि बस इमोजी भेजें
ये जीत तो एक निशानेबाज की है न कि एक राष्ट्र की
Arya Darmawan
अवनी की जीत एक टेक्निकल मैग्निफाइसिंग डिस्प्ले नहीं है ये एक सिस्टमैटिक इम्प्रूवमेंट का प्रोडक्ट है जिसमें डेटा-ड्रिवन ट्रेनिंग, बायोमेकेनिकल एडजस्टमेंट्स, और मेंटल रिसिलिएंस ट्रेनिंग शामिल हैं
मोना का कांस्य भी एक फाइनल फेज कंट्रोल एक्सपेरिमेंट था - उन्होंने क्वालीफाइंग राउंड में 623.1 के बाद फाइनल में 228.7 बनाया जो कि एक स्टैटिस्टिकल आउटलायर है
इसका मतलब ये है कि उनकी एंट्री एक बार फिर एक नया नॉर्म तय कर रही है
हमें इस तरह की उपलब्धियों को डिस्क्रिप्टिव नहीं बल्कि प्रेडिक्टिव एनालिसिस के साथ देखना चाहिए
अगर हम इसे एक एथलेटिक फिजिकल इंटरफेस के रूप में देखें तो ये एक नया बायोमेकेनिकल इनोवेशन है
हमारे खेल विभाग को अब इसे एक रिसर्च प्रोजेक्ट बनाना चाहिए न कि एक वायरल वीडियो
Raghav Khanna
मैं एक कोच हूँ और मैंने अवनी के ट्रेनिंग रूटीन को अपने छात्रों के लिए एक निर्देशिका के रूप में बनाया है
उनकी राइफल होल्डिंग टेक्निक, श्वास नियंत्रण का समय, और फोकस रिकवरी टाइम - ये सब एक एक नमूना है
मैंने अपने शिष्यों को इसका वीडियो अनालिसिस दिया है और उन्होंने अपने स्कोर में 18% सुधार किया है
यहाँ कोई भावनात्मक अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि एक सामरिक शिक्षण रणनीति है
अवनी की जीत एक नियम है जिसे दोहराया जा सकता है - और यही हमें अगले चरण में ले जाएगा
HIMANSHU KANDPAL
मैंने इस बार नहीं देखा था अवनी का शूट... मैं तो बस घर पर बैठा था और फोन पर न्यूज़ पढ़ रहा था...
अब मैं बस इतना कह सकता हूँ कि मैंने इसे देखना चाहता था...
लेकिन अब तो बहुत देर हो चुकी है...
अब मैं बस इसके बारे में सोचता रहूँगा...
क्या मैंने इसे देख लेना चाहिए था...
क्या मैंने इसे अपने दिल से अनुभव कर लेना चाहिए था...
अब तो बस यही बचा है...
मैं तो बस एक आम इंसान हूँ...
और अब मैं इस जीत के लिए बहुत दुखी हूँ...
Maj Pedersen
अवनी और मोना की जीत एक शिक्षा है जिसे हम सबको सीखना चाहिए - आत्मविश्वास की शक्ति, अनुशासन का महत्व, और एक ऐसे देश में जीने का साहस जहाँ आपकी क्षमता को नहीं, आपकी अक्षमता को देखा जाता है।
हमें अपने बच्चों को यही सिखाना चाहिए - कि जीतने का मतलब सिर्फ पदक नहीं, बल्कि अपने डर को पार करना है।
इस दिन को भारत के शिक्षा अनुसूची में शामिल किया जाना चाहिए।