दिल्ली की हवा में प्रदूषण का बढ़ता असर: दीवाली पर 'गंभीर' श्रेणी में पहुँचने का खतरा

दिल्ली की हवा में प्रदूषण का बढ़ता असर: दीवाली पर 'गंभीर' श्रेणी में पहुँचने का खतरा

दिल्ली की हवा में प्रदूषण का बढ़ता असर: दीवाली पर 'गंभीर' श्रेणी में पहुँचने का खतरा 1 नव॰

दिल्ली की हवा में बढ़ता प्रदूषण और दीवाली का प्रभाव

दिल्ली में दीवाली के अवसर पर प्रदूषण का स्तर एक बार फिर उच्चतम स्तर पर पहुँच गया है। चौबीस घंटे के औसत एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) में जबरदस्त उछाल देखने को मिल रहा है, जो 4 बजे 328 पर पहुँच गया है। यह पूर्व दिन बुधवार की AQI 307 से बढ़कर है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के आंकड़े बता रहे हैं कि राजधानी के अलग-अलग हिस्सों में प्रदूषण की स्थिति 'बहुत खराब' श्रेणी में पहुँच चुकी है।

प्रशासन के स्तर पर उपाय

दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने 377 टीमों का गठन किया है जो पटाखों के उपयोग पर रोकथाम के लिए प्रतिबंध लगा रही हैं। यह टीमें रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशनों, मार्केट एसोसिएशनों, और सामाजिक संगठनों के साथ संपर्क में हैं ताकि लोगों में जागरूकता फैलाई जा सके। पुलिस टीमों को भी पटाखों के उपयोग को रोकने के लिए तैनात किया गया है।

हालांकि पटाखों पर प्रतिबंध लागू है, फिर भी यह आशंका बनी हुई है कि लोग दिवाली के उत्साह में पटाखों का उपयोग कर सकते हैं, जिससे प्रदूषण का स्तर और बढ़ सकता है। यह अनुमान लगाया जा रहा है कि पटाखों की वजह से AQI 'गंभीर' श्रेणी में पहुँच सकता है। दिल्ली की हवा में प्रदूषण का स्तर पिछले कुछ समय से गंभीर चिंता का विषय बन गया है और इसकी वजह से जनता का जीवन असहज हो गया है।

प्रदूषण के स्रोत और चुनौतियाँ

दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण की कई वजहें हैं। यहां वाहनों से निकलने वाला धुआं, पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने की घटनाएं और मौसम की प्रतिकूल परिस्थितियां प्रमुख कारण हैं। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति स्थितियों को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही है, लेकिन समस्या आबाद है।

समिति के विश्लेषण के अनुसार, दिल्ली में प्रदूषण का स्तर 1 नवंबर से 15 नवंबर के बीच चरम पर पहुँचता है। इस दौरान विशेष रूप से पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाएं बढ़ जाती हैं। विगत वर्षों में के मुकाबले इस साल दीवाली पर दिल्ली में AQI 328 तक पहुँच चुका है। 2023 में यह 218 था, 2022 में 312, 2021 में 382, 2020 में 414, 2019 में 337 पर था। इसके अलावा, गाजियाबाद, गुरुग्राम, ग्रेटर नोएडा और नोएडा की हवा 'खराब' श्रेणी में आंकी गई है, जबकि फरीदाबाद में AQI 'मध्यम' यानी 181 पर थी।

जनता की भूमिका और जिम्मेदारी

जनता की भूमिका और जिम्मेदारी

सबसे अहम भूमिका जनता की है। जब तक लोग खुद से जिम्मेदारी नहीं निभाते, तब तक यह मुश्किल बनी रहेगी। हर व्यक्ति को यह समझना होगा कि पटाखों का उपयोग न करने से हम अपने और आने वाली पीढ़ियों के स्वास्थ्य को सुरक्षित कर सकते हैं। बाजार और सामूहीक आयोजनों पर भी ध्वनि और धुएं से उत्पन्न होने वाले प्रदूषण को कम करने के प्रयास होने चाहिए।

सामूहिक प्रयासों की आवश्यक्ता

सरकार और जनता के सामूहिक प्रयास से ही इस समस्या का समाधान संभव है। यह आवश्यक है कि हम मिलकर उन स्रोतों को नियंत्रित करें, जो इस संकट को और बढ़ा रहे हैं। दीवाली के इस अवसर पर हमें सोच-समझकर काम करना होगा ताकि हम आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए बेहतर वातावरण छोड़ सकें।

अंततः, दिल्ली की हवा को स्वच्छ और स्वस्थ बनाना सामूहिक जिम्मेदारी है। हर एक व्यक्ति के छोटे-छोटे प्रयास इस दिशा में बड़ा बदलाव ला सकते हैं। होंसला और जैविक सामग्री का उपयोग, नए और पर्यावरण अनुकूल तरीकों को अपनाकर हमें पटाखों पर निर्भरता कम करनी होगी।



टिप्पणि (14)

  • Suhas R
    Suhas R

    ये सब सरकारी टीमें बस नाम के लिए बनाई जाती हैं। असली में कोई नहीं रोकता, पुलिस भी देखती है तो भी नहीं रोकती। ये सब दिखावा है। दीवाली पर पटाखे जलाने वालों को जेल भेज दो, नहीं तो ये धुआं तो बस बढ़ता रहेगा।

  • Pradeep Asthana
    Pradeep Asthana

    अरे भाई, ये सब बकवास है। पटाखे जलाने से पहले तो तुम अपने घर का बिजली बिल देखो। बिजली घर में चल रही है ना? वो भी प्रदूषण कर रही है। फिर पटाखे पर इतना शोर क्यों?

  • Shreyash Kaswa
    Shreyash Kaswa

    हम भारतीय हैं, हमारी संस्कृति में दीवाली एक पवित्र त्योहार है। इसे बंद करने की बात नहीं हो सकती। प्रदूषण का मुद्दा अलग है, लेकिन हमें अपनी परंपरा को बरकरार रखना होगा। हम नए तरीके ढूंढ सकते हैं - जैसे बिना धुएं वाले पटाखे।

  • Sweety Spicy
    Sweety Spicy

    ओहो तो अब दीवाली को गंभीर श्रेणी में डाल दिया? तो फिर अगले साल आप बताएंगे कि दिल्ली की हवा अब 'अंतिम श्रेणी' में है? क्या आपने कभी सोचा कि जो लोग यहां रहते हैं, वो अपने घरों में एयर प्यूरिफायर चलाते हैं? वो भी प्रदूषण कर रहे हैं। ये सब एक बड़ा धोखा है।

  • Maj Pedersen
    Maj Pedersen

    हम सबको यह समझना होगा कि एक छोटा सा बदलाव बहुत कुछ बदल सकता है। बस एक दीवाली के लिए पटाखों का उपयोग न करना - यह एक बड़ा प्रयास है। हमारे बच्चों के लिए हम इस धुएं को नहीं छोड़ सकते। आइए एक साथ इस दिशा में काम करें।

  • Ratanbir Kalra
    Ratanbir Kalra

    प्रदूषण बढ़ रहा है तो क्या हुआ अब जो लोग पटाखे जलाते हैं वो उनके घर में भी धुएं है और वो धुएं भी तो बाहर जा रहा है और बाहर का धुआं भी अंदर आ रहा है और अंदर का धुआं भी बाहर जा रहा है और अब ये सब एक चक्र है जो कभी खत्म नहीं होगा क्योंकि इंसान बदलता नहीं

  • Seemana Borkotoky
    Seemana Borkotoky

    मैंने पिछले साल दीवाली पर कोई पटाखा नहीं जलाया। बस एक छोटा सा लाइट डिस्प्ले लगाया। बच्चे खुश रहे, और मैं भी। असली जश्न तो दिल में होता है, धुएं में नहीं।

  • Sarvasv Arora
    Sarvasv Arora

    इस देश में किसी को भी नहीं रोक सकता। अगर तुम एक आदमी को बोलो कि पटाखे न जलाए, तो वो दो बॉक्स खरीद लेगा। ये लोग जिम्मेदारी की बात तो करते हैं, लेकिन अपनी आदतें बदलने के लिए तैयार नहीं। ये देश तो बस शोर में रहता है।

  • Jasdeep Singh
    Jasdeep Singh

    आप लोग बस एक तरफ़ की बात कर रहे हैं। ये प्रदूषण केवल पटाखों का नहीं है। ये तो सारी इंडस्ट्रीज़ का है। जो लोग एयरप्लेन उड़ाते हैं, जो थर्मल पावर प्लांट चलाते हैं, जो डीजल ट्रक चलाते हैं - उनके खिलाफ कोई आवाज़ नहीं उठ रही। ये सब दीवाली पर जानबूझकर बनाया गया ड्रामा है। ये जनता को भ्रमित करने की कोशिश है।

  • Rakesh Joshi
    Rakesh Joshi

    दोस्तों, ये बदलाव संभव है। मैंने अपने आसपास के लोगों को बताया - अगर हम सब मिलकर एक दिन के लिए पटाखे न जलाएं, तो हवा भी थोड़ी साफ़ हो जाएगी। ये छोटा सा कदम है, लेकिन इससे बड़ा बदलाव आएगा। हम इसे एक नया ट्रेंड बना सकते हैं।

  • HIMANSHU KANDPAL
    HIMANSHU KANDPAL

    मैंने देखा है - जो लोग सबसे ज्यादा शोर मचाते हैं, वो खुद घर पर दीवाली पर बहुत सारे पटाखे जलाते हैं। ये सब नकली चेतना है। जब तक लोग खुद नहीं बदलेंगे, तब तक ये सब बकवास चलता रहेगा।

  • Arya Darmawan
    Arya Darmawan

    मैं एक एनवायरनमेंटल साइंटिस्ट हूँ। आप लोगों को बताता हूँ - दीवाली के दिन एक घंटे में जितना PM2.5 बनता है, वो एक छोटे शहर के एक महीने के बराबर होता है। लेकिन ये बात जानकर भी लोग नहीं बदल रहे। अगर हम बिना धुएं वाले पटाखे इस्तेमाल करें, तो 70% प्रदूषण घट जाएगा। ये तकनीक मौजूद है - बस इस्तेमाल करने की इच्छा नहीं।

  • Raghav Khanna
    Raghav Khanna

    हमें अपनी जिम्मेदारी के प्रति सचेत होना चाहिए। प्रशासन ने उचित कदम उठाए हैं। अब जनता की बारी है। एक छोटा सा विकल्प - बिना धुएं वाले पटाखे, या बस एक बार नहीं जलाना - यही बड़ा बदलाव ला सकता है। इस बार आइए, एक नया दीवाली बनाएं।

  • Rohith Reddy
    Rohith Reddy

    ये सब एक गुप्त योजना है। पटाखों पर प्रतिबंध के बाद अगला लक्ष्य क्या होगा? आग का उपयोग? लाइट बल्ब? ये सब एक बड़े नियंत्रण के लिए है। आप लोग इसे सच मान रहे हैं? ये तो बस एक बड़ा धोखा है।

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