दुर्गा अष्टमी – तिथि, कथा, पूजा और अष्टमी व्रत के रहस्य

जब हम दुर्गा अष्टमी, हिंदू कैलेंडर में माँ दुर्गा को सम्मानित करने वाला अष्टमी व्रत वाला प्रमुख तिथि है. इसे अक्सर अष्टमी कहा जाता है, यह न केवल धार्मिक महत्व रखती है बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी बहुत गहरी है। इसी संदर्भ में माँ दुर्गा, शक्ति की प्रमुख देवी, सृष्टि की रक्षक और सात रूपों में से एक का प्रसाद, आरती और जप इस दिन के मुख्य तत्व हैं। दुर्गा अष्टमी का जश्न अक्सर अष्टमी व्रत के साथ जुड़ा होता है, जो अष्टमी व्रत, एक ऐसा उपवास जो शक्ति स्त्री के सम्मान में रखा जाता है, जिसमें अन्न, जल और विशेष वस्तुओं का परहेज किया जाता है के रूप में देखा जाता है। इस व्रत की शुरुआत शुक्ल पक्ष की अष्ठमी से होती है और यह शुद्धता, शक्ति और समृद्धि की कामना का प्रतीक माना जाता है।

दुर्गा अष्टमी का जुड़ाव पंचांग, हिंदू कैलेंडर की ऐसी प्रणाली जो तिथि, नक्षत्र और योग को निर्धारित करती है से भी है। पंचांग के अनुसार इस दिन की मुहूर्त, शुक्ल अष्ठमी तिथि, तारा (नक्षत्र) और योग तय होते हैं, जिससे पूजा की सही समय-सारणी बनती है। कई परिवार इस दिन अष्टकोठा या अष्टकोण में स्थापित फोटो या मूर्तियों की पूजा करते हैं, जहाँ प्रत्येक कोने में माँ दुर्गा के एक रूप को स्थापित किया जाता है। साथ ही, अष्टकोठा, दुर्गा अष्टमी की विशेष पूजा में सात कोठानों में माँ दुर्गा की विभिन्न अभिव्यक्तियों का स्वरूप को सजाकर गहरी आस्था व्यक्त की जाती है। इस प्रक्रिया में तुलसी, धूप, दीप और अर्पण के साथ विशेष मंत्रोच्चारण किया जाता है, जिससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बनता है।

दुर्गा अष्टमी के मुख्य रिवाज़ और त्यौहार के रूप

रिवाज़ों की बात करते हुए, कई लोग अष्टमी व्रत के दौरान केवल फल और दूध का सेवन करते हैं, जबकि शाकाहारी भोजन से परहेज रखते हैं। इस व्रत को तोड़ने का प्रमुख समय श्वेत शुक्रमा के अंत में होता है, जहाँ मीठे व्यंजन जैसे पूरन पोहा, सर्विका या कड़ी की रोटी प्रमुखता से बनती है। पूजा के दौरान त्रिवेणी, कुंड में पानी, दुध और दहिये का मिश्रण, जो शुद्धता और समृद्धि का प्रतीक है का उपयोग किया जाता है। इस त्रिवेणी से पवित्र स्नान करने से शरीर और मन दोनों शुद्ध होते हैं, और यह अष्टमी के आशिर्वाद को घर तक लाता है। साथ ही, कई जगहों पर अष्टमी के बाद महालया (शुरुआती) और बंधन (विलय) के रूप में, दुर्गा उदधि (जगन्नाथ) की वंदना की जाती है, जिससे समाज में एकता और सद्भाव का संदेश जाता है।

इन सभी रिवाज़ों को समझते हुए, हम देखते हैं कि दुर्गा अष्टमी सिर्फ एक तिथि नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक मंच है जहाँ माँ दुर्गा की शक्ति, पंचांग की विज्ञान और सामाजिक जुड़ाव एक साथ आते हैं। इस पेज पर आपको विभिन्न लेख मिलेंगे जो अष्टमी व्रत के व्यापक पहलुओं, पूजा सामग्री, स्थानीय मेले, और आधुनिक समय में इस आस्था को कैसे अपनाया जाए, इस पर रोशनी डालते हैं। अगली सूची में आप पढ़ेंगे कि कैसे अष्टमी व्रत में सही पोषण रखें, कौन‑से मंत्र नियमित रूप से उच्चारित करें, और अलग‑अलग क्षेत्रीय रिवाज़ों में क्या खास है। यह गाइड आपके लिए एक संपूर्ण मार्गदर्शिका बनकर काम करेगा, चाहे आप पहली बार अष्टमी मनाने वाले हों या इस त्योहार की गहरी समझ चाहते हों।

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