जब Mata Ahoi, गौरी देवी की पूजा अहोइ अष्टमी 2025 न्यू दिल्ली में सोमवार, 13 अक्टूबर को हुई, तब पूरे देश में माँ‑बच्चे की बंधन को नई ऊर्जा मिली। बंदरों ने इस दिन को करवा चंद के बाद और दीपावली से आठ दिन पहले मनाया, जिससे यह त्यौहार हिन्दू कैलेंडर की सबसे व्यस्त अवधि में पड़ता है। Drik Panchang के अनुसार, पूजा मुहूर्त 05:53 PM से 07:08 PM तक रहा, कुल मिलाकर 1 घंटा 15 मिनट का पवित्र समय। यह समय सितारों के उभरते दृश्य पर आधारित है, जिससे उपवास का परादान नज़र में झिलमिलाते तारे देखते‑ही‑करा समाप्त होता है।
इतिहास और पौराणिक पृष्ठभूमि
अहोइ अष्टमी का मूल स्रोत प्राचीन वैदिक ग्रन्थों में मिलती है, जहाँ माँ‑बच्चे की सुरक्षा का महत्व बार‑बार दोहराया गया है। पौराणिक कथा के अनुसार, गुड़ी माता (जिसे गौरी माता या Lakshmi के रूप में भी जाना जाता है) ने उन माताओं को आशीर्वाद दिया था जो बिना स्वार्थ के अपने बच्चों के कल्याण के लिए उपवास रखती थीं। यह परंपरा शुरुआती सामाजिक संरचना में केवल पुत्रों के लिए थी; फिर 1950‑60 के दशकों में सामाजिक सुधार के साथ इसे सभी बच्चों, बेटियों सहित, तक विस्तारित किया गया।
वर्तमान रिवाज और पूजा‑समय
आजकल उपवास का नियम बहुत सख्त है: अधिकांश महिलाएँ सुबह के सूर्योदय से लेकर शाम के अंधेरे तक न केवल भोजन बल्कि जल भी नहीं लेतीं। फिर भी, कई शहरों में महिलाएँ उन्नत दैनिक जीवन के कारण पानी पीने की अनुमति लेती हैं, पर फिर भी यह उपवास «पर्याप्त कठोर» माना जाता है। पुजा मुहूर्त के दौरान घर के मुख्य हॉल में एक छोटी आहुति की थाली रखी जाती है, जिसमें चावल, दही, घी और अँजना (सरसी के बीज) होते हैं। माँ‑बच्चे की फोटो या अनुपालन के साथ, माँ द्विपद्य (दुहाई) गाती हैं, फिर आधे घंटे तक धूप में खड़े होकर दुआ करती हैं।
उपवास का अंत तब होता है जब सितारे देखे जाते हैं; आम तौर पर यह 6:17 PM के आसपास होता है, जैसा कि Economic Times ने कई शहरों के लिए प्रकाशित किया है। कुछ क्षेत्रों में, माँ चाँद की पहली रोशनी तक इंतजार करती है, लेकिन चूँकि इस दिन चाँद देर से निकलेगा, इसलिए कई लोग तारा‑उदय को ही मुख्य संकेत मानते हैं।
क्षेत्रीय विविधताएँ
पारम्परिक पंचांग के दो मुख्य स्वरूप – पुर्निमंत (उत्तरी भारत) और अमान्त (दक्षिण भारत) – में माह का नाम अलग‑अलग है, परंतु दिन समान रहता है। उत्तरी भारत में यह कर्तिक महीने में पड़ता है, जबकि महाराष्ट्र, गुजरात और कई दक्षिणी राज्य क्षितिज पर इसे अश्विन मानते हैं। इस अंतर के बावजूद, दिल्ली‑केंद्रित गणना सभी राज्यों में एक ही सूरज‑उदय‑अस्त तक लागू होती है। यहाँ तक कि हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश की ग्रामीण महिलाएँ भी अब सहली‑पुरुष के बजाए सभी संतानों के कल्याण के लिए उपवास रखती हैं।
शहरी केंद्रों – मुंबई, कोलकाता, गुरुग्राम, नोएडा – में एक्स‑टेंडेड रसोई के साथ डिजिटल पंचांग एप्स का उपयोग भी बढ़ा है, जिससे उपवास‑समाप्ति का सटीक समय मोबाइल पर देखा जा सकता है।
समाज पर प्रभाव और विशेषज्ञ विचार
समाजशास्त्री डॉ. सुनीता जैन का कहना है, “अहोइ अष्टमी सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, यह माँ‑बच्चे के बीच की भावनात्मक बंधन को सुदृढ़ करने का एक सामाजिक साधन है। जब महिलाएँ पूर्ण निश्चलता के साथ प्रार्थना करती हैं, तो यह उनके आत्म‑सम्मान को भी बढ़ाता है।” इसी दौरान, Economic Times के एक रिपोर्टर ने उद्धृत किया: “एक माँ की प्रार्थना सबसे मजबूत आशीर्वाद है; अहोइ अष्टमी इस प्रेम को शब्दों से परे एक अनुभव बनाता है।”
सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने भी संकेत दिया है कि अत्यधिक जल‑विराम से संभावित डिहाइड्रेशन के जोखिम को कम करने के लिए, दर्शकों को हल्का फलों‑का रस या नारियल पानी का सेवन करने की सलाह दी गई है, बशर्ते यह “अवधि‑क्रम में ही” किया जाए।
आगामी वर्ष की तैयारियाँ और सुझाव
यदि आप इस वर्ष अहोइ अष्टमी मनाने की योजना बना रहे हैं, तो यहाँ कुछ आसान टिप्स हैं:
- उपवास शुरू करने से पहले, डॉक्टर या पोषण विशेषज्ञ से परामर्श कर अपनी स्वास्थ्य‑स्थिति के अनुसार तय करें।
- ड्रिक पंचांग के आधिकारिक ऐप या वेबसाइट से आपके शहर का पुजा‑मुहूर्त और तारा‑उदय समय जाँचें।
- रात के खाने में हल्की दाल, चावल और घी‑भरा सादा भोजन रखें, ताकि उपवास‑ब्रेक के बाद हज़म करने में कठिनाई न हो।
- परिवार के साथ मिलकर दोपहर में “भागवती” (संतुष्ट) गीत गाएँ – यह माँ के मनोबल को बढ़ाता है।
- आवश्यक होने पर, छोटे बच्चों को पानी‑प्याला देकर हल्का फिश का प्रयोग करें, ताकि डिहाइड्रेशन न हो।
अंत में, यह याद रखें कि अहोइ अष्टमी का सच्चा सार “भक्ति, प्रेम और बलिदान” है, न कि अनावश्यक कठोरता। इस भावना को अपने घर में जिएँ और अपने बच्चों को भी इस सांस्कृतिक धरोहर की महत्ता बताइए।
भविष्य की दृष्टि
जैसे-जैसे भारत में शहरीकरण बढ़ रहा है, उतनी ही तेज़ी से डिजिटल पंचांग और मोबाइल‑एप्लिकेशन के माध्यम से दैविक समय की जानकारी उपलब्ध हो रही है। अगले साल, 2026 में, सामाजिक मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर #AhoiAshtami ट्रेंड की संभावना है, जिससे स्थानीय परम्पराओं को वैश्विक दर्शकों तक पहुंचाने में मदद मिलेगी।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
अहोइ अष्टमी में उपवास किन-किन दिनांक को शुरू होता है?
उपवास सूर्योदय से शुरू होता है, अर्थात् 13 अक्टूबर 2025 को सुबह 06:31 AM (न्यू दिल्ली के अनुसार) से लेकर शाम के तारा‑उदय तक चलता है। इस दौरान अधिकांश महिलाएँ जल‑सर्विस भी नहीं लेतीं।
क्या यह त्यौहार केवल उत्तर भारत में मनाया जाता है?
नहीं। अहोइ अष्टमी पूरे भारत में मनाई जाती है, परन्तु पौराणिक रूप से यह उत्तर भारत में अधिक प्रचलित है। दक्षिणी राज्यों में भी अमान्त कैलेंडर अनुसार वही तिथि मनाई जाती है, बस माह का नाम अलग‑अलग हो सकता है।
कौन‑सी दुविधाएँ या स्वास्थ्य‑सम्बंधी जोखिम हो सकते हैं?
डिहाइड्रेशन सबसे बड़ा जोखिम है, विशेषकर गर्मी वाले क्षेत्रों में। इसलिए डॉक्टर सलाह देते हैं कि यदि किसी को स्वास्थ्य‑समस्या है, तो हल्का फल‑जूस या नारियल पानी थोड़ा‑बहुत लेना ठीक है, बशर्ते इसे आध्यात्मिक अनुष्ठान में बाधा न माना जाए।
अहोइ अष्टमी और करवा चाँद में क्या समानता है?
दोनों ही त्यौहार में माताओं द्वारा उपवास किया जाता है, लेकिन करवा चाँद में यह केवल पुत्र का स्वास्थ्य एवं लंबी उम्र की कामना हेतु होता है, जबकि अहोइ अष्टमी अब सभी संतान के कल्याण के लिए मनाई जाती है।
क्या अहोइ अष्टमी का कोई आधिकारिक सरकारी घोषणा है?
यह प्रमुख धार्मिक कैलेंडर का हिस्सा है, इसलिए भारत सरकार इसकी कोई अलग घोषणा नहीं करती। परन्तु विभिन्न राज्य सरकारें सार्वजनिक विद्यालयों में इस दिन की जानकारी साझा करती हैं, जिससे बच्चे भी इस सांस्कृतिक महत्व को समझ सकें।
Anil Puri
अहोइ अष्टमी का नाम सुनते ही लोग पैसे की गणना शुरू कर देते हैं, असल में ये तो बस एक और बाजार‑बार है। बन्धन का दावा करने वाले अपने ही मुनाफे का बहाना बना रहे हैं।